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Wednesday, September 11, 2019

September 11, 2019

फिर कुछ इक दिल को - Phir Kuchh Ik Dil Ko (Jagjit Singh, Mirza Ghalib)

Movie/Album: मिर्ज़ा ग़ालिब (टी वी सीरियल) (1988)
Music By: जगजीत सिंह
Lyrics By: मिर्ज़ा ग़ालिब
Performed By: जगजीत सिंह

फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है
सीना ज़ोया-ए-ज़ख़्म-ए-कारी है

फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं
फिर वही ज़िन्दगी हमारी है

बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं, "ग़ालिब"
कुछ तो है, जिसकी पर्दा-दारी है

Tuesday, September 10, 2019

September 10, 2019

वो फ़िराक़ और वो विसाल - Wo Firaaq Aur Wo Visaal (Jagjit Singh, Mirza Ghalib)

Movie/Album: मिर्ज़ा ग़ालिब (टी वी सीरियल) (1988)
Music By: जगजीत सिंह
Lyrics By: मिर्ज़ा ग़ालिब
Performed By: जगजीत सिंह

वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ
वो शब-ओ-रोज़-ओ-माह-ओ-साल कहाँ

थी वो इक शख़्स के तसव्वुर से
अब वो रानाई-ए-ख़याल कहाँ
वो शब-ओ-रोज़...

ऐसा आसाँ नहीं लहू रोना
दिल में ताक़त, जिगर में हाल कहाँ
वो शब-ओ-रोज़...

फ़िक़्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ
वो शब-ओ-रोज़...
वो फ़िराक़ और वो विसाल...

Sunday, September 8, 2019

September 08, 2019

बस के दुश्वार है - Bas Ke Dushwaar Hai (Chitra Singh, Jagjit Singh, Mirza Ghalib)

Movie/Album: मिर्ज़ा ग़ालिब (टी वी सीरियल) (1988)
Music By: जगजीत सिंह
Lyrics By: मिर्ज़ा ग़ालिब
Performed By: चित्रा सिंह, जगजीत सिंह

चित्रा सिंह
बस के दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना

कि मेरे क़त्ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबा
हाय उस ज़ूद-पशेमाँ का पशेमाँ होना

हैफ़ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत ‘ग़ालिब’
जिसकी क़िस्मत में हो आशिक़ का गरेबाँ होना
बस के दुश्वार है...

जगजीत सिंह
बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना,
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना

घर हमारा जो न रोते भी तो वीराँ होता
ब-हर गर बहर न होता तो बयाबाँ होता

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना

दर्द मिन्नतकश-ए-दवा न हुआ
मैं न अच्छा हुआ, बुरा न हुआ

इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई
मेरे दुःख की दवा करे कोई

बक रहा हूँ जुनूँ में क्या क्या कुछ
कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई

Saturday, September 7, 2019

September 07, 2019

सब कहाँ कुछ - Sab Kahan Kuch (Begum Akhtar, Jagjit Singh, Mirza Ghalib)

Movie/Album: ग़ैर-फ़िल्मी, मिर्ज़ा ग़ालिब (टी वी सीरियल) (1988)
Music By: ख़य्याम, जगजीत सिंह
Lyrics By: मिर्ज़ा ग़ालिब
Performed By: बेगम अख़्तर, जगजीत सिंह

बेगम अख़्तर
सब कहाँ, कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
ख़ाक में क्या सूरतें होंगी, के पिन्हाँ हो गईं

याद थीं हम को भी रंगा-रंग बज़्म-आराईयाँ
लेकिन अब नक़्श-ओ-निगार-ए-ताक़-ए-निस्याँ हो गईं

हम मुवहि्द हैं, हमारा केश है तर्क-ए-रूसूम
मिल्लतें जब मिट गईं, अजज़ा-ए-ईमाँ हो गईं

नींद उस की है, दिमाग़ उस का है, रातें उस की हैं
तेरी ज़ुल्फ़ें जिस के बाज़ू पर परेशाँ हो गईं

रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ, तो मिट जाता है रंज
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी, के आसाँ हो गईं

जगजीत सिंह
सब कहाँ, कुछ लाला-ओ-गुल में नुमायाँ हो गईं
ख़ाक में क्या सूरतें होंगी, के पिन्हाँ हो गईं

रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ, तो मिट जाता है रंज
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी, के आसाँ हो गईं

यूँ ही गर रोता रहा "ग़ालिब", तो ऐ अहल-ए-जहां
देखना, इन बस्तियों को तुम, के वीराँ हो गईं

Tuesday, September 3, 2019

September 03, 2019

कब से हूँ क्या बताऊँ - Kab Se Hoon Kya Bataaoon (Jagjit Singh, Mirza Ghalib)

Movie/Album: मिर्ज़ा ग़ालिब (टी वी सीरियल) (1988)
Music By: जगजीत सिंह
Lyrics By: मिर्ज़ा ग़ालिब
Performed By: जगजीत सिंह

क़ासिद के आते आते
ख़त एक और लिख रखूँ
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में

कब से हूँ, क्या बताऊँ, जहान-ए-ख़राब में
शब-हा-ए-हिज्र को भी रखूँ गर हिसाब में

मुझ तक कब उनकी बज़्म में, आता था दौर-ए-जाम
साक़ी ने कुछ मिला ना दिया हो शराब में

ता फिर ना इंतज़ार में नींद आये उम्र भर
आने का अहद कर गये, आए जो ख़्वाब में

"ग़ालिब" छुटी शराब, पर अब भी कभी-कभी
पीता हूँ रोज़-ए-अब्र-ओ-शब-ए-माहताब में
कब से हूँ...

Monday, August 26, 2019

August 26, 2019

ज़ुल्मत कदे में मेरे - Zulmat Kade Mein Mere (Jagjit Singh, Mirza Ghalib)

Movie/Album: मिर्ज़ा ग़ालिब (टी वी सीरियल) (1988)
Music By: जगजीत सिंह
Lyrics By: मिर्ज़ा ग़ालिब
Performed By: जगजीत सिंह

ज़ुल्मत-कदे में मेरे, शब-ए-ग़म का जोश है
इक शम'आ है दलील-ए-सहर, सो ख़मोश है

ने मुज़्दा-ए-विसाल ना नज़्ज़ारा-ए-जमाल
मुद्दत हुई कि आश्ती-ए-चश्म-ओ-गोश है

दाग़-ए-फ़िराक़-ए-सोहबत-ए-शब की जली हुई
इक शम'आ रह गई है, सो वो भी खामोश है
ज़ुल्मत-कदे में मेरे...

आते हैं ग़ैब से, ये मज़ामीं ख़याल में
ग़ालिब, सरीर-ए-ख़ामा नवा-ए-सरोश है
ज़ुल्मत-कदे में मेरे...
August 26, 2019

न था कुछ तो - Na Tha Kuch To (Jagjit Singh, Mirza Ghalib)

Movie/Album: मिर्ज़ा ग़ालिब (टी वी सीरियल) (1988)
Music By: जगजीत सिंह
Lyrics By: मिर्ज़ा ग़ालिब
Performed By: जगजीत सिंह

न था कुछ तो ख़ुदा था
कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझको होने ने
न होता मैं तो क्या होता

हुआ जब ग़म से यूँ बे-हिस
तो ग़म क्या सर के कटने का
न होता गर जुदा तन से
तो ज़ानों पर धरा होता

हुई मुद्दत के "ग़ालिब" मर गया
पर याद आता है
वो हर एक बात पे कहना
के यूँ होता, तो क्या होता